घाटियों के बीच से भागती गाड़ी कब रांची एयरपोर्ट से पतरातू पहुंच गई पता ही नहीं चला। मुश्किल से एक घंटे का वक्त लगा यह सफर तय करने में। कभी ये रास्ता तय करना, पहाड़ चढ़ने जैसा हुआ करता था। घुमावदार सड़कों पर रेंगती बसें ढाई-तीन घंटे से पहले पतरातू नहीं पहुंचाती थीं।
वैसे, तब के उस सफर में गजब का रोमांच था। घाटियों की जोखिम भरी पर प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यात्रा को कुछ सालों पहले चौड़ी की गईं सड़कों ने आसान बना दिया। चढ़ावदार घाटियां और उसके तीखे मोड़ कम हो गए। घाटी पहले से अच्छी स्थिति में है - अब घाटियों के अंतिम छोर पर बसे पतरातू या यूं कहें कि पतरातू थर्मल की बारी है।
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