जब रास्ता ही इतना खूबसूरत हो, तो सोचिए शहर कितना सुंदर होगा हमारा 'पतरातू'!


वैसे तो हर किसी के कहानी में पतरातू के अपने-अपने किस्से हैं. बाहर से आने वाले किसी परिवार के लिए सालाना पिकनिक का स्पॉट है, तो किन्हीं पुराने यारों का रीयूनियन का अड्डा, कितने ही प्रेमी-प्रेमिका के डेटिंग लोकेशन है तो कुछ लोगों के डेस्टिनेशन वेडिंग की जगह. और तो और साल के अंत तक प्रवासी पक्षियों का भी ठिकाना है हमारा पतरातू. मगर इस जगह की असल कहानी वहां पले बढ़े हर लोग की जीवन का ना सिर्फ किस्सा है बल्कि अभिन्न हिस्सा है.  

कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा पतरातू सिर्फ घाटी और डैम तक ही नहीं सीमित है, बल्कि यह जगह ऐसे लोगों का गढ़ है जिनके जीवन की कहानियों में घाटी से ज्यादा उतार चढाव और डैम से ज्यादा गहराई है. उन लोगों की जीवन के कहानियों का समूह है जो 4 बराबर चिमनी देख के बड़े हुए हैं, जिनको आज अचानक से इतना बड़ा चिमनी देख कर अजीब लगता है. 


अगर वाकई में देखा जाए तो हमारा शहर काफी छोटा है, रेलवे फाटक से शुरू होकर पतरातू घाटी तक खत्म हो जाता है, मोटरसाइकिल वाले 25 मिनट और निब्बा लोग केटीएम लेकर 10 मिनट में शहर को रौंद देते हैं. लेकिन ठीक से एंट्री मार दिए तो पूरा दिन निकल जाएगा आप शहर से निकल नहीं पाइएगा, कब 17 नंबर रोड खत्म होकर 34 में घुस जाइएगा और कब रसदा से लबगा चल जाइएगा समझना मुश्किल हो जाता है. 


सड़कें उतनी मजबूत तो नहीं है पर दशकों से पतरातू के लोगों के इरादे जरूर मजबूत हैं. हमारे यहां दिल्ली और कोटा जैसी कॉचिंग तो नहीं होती फिर भी यहां कितने स्टूडेंटस आईआईटी कर जाते हैं. भारत के किसी कोने में चल जाइए हमारे यहां के लोग झंडा गाड़े मिल जाएंगे. एमएनसी, बैंक, एसएससी, डिफेंस, विधि, पुलिस, पत्रकारिता और ना जाने कितने सारे क्षेत्रों में पतरातू का नाम बुलंद किए युवक और युवतियां दूसरे शहरों में अपना जीवन यापन कर रहे हैं. 


खेलकूद की बात करें तो क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबाल, बैडमिंटन, एथलेटिक्स, कराटे और अन्य कई खेलों के ना जाने इस क्षेत्र के कितने धुरंधर निकले जिन्होंने राज्य और देश स्तर के मुकाबलों में नाम रौशन किया. हालांकि पहले भी संसाधनों की कमी थी और आज भी वही स्थिति बदस्तूर जारी है. पर कमी ने कभी राह नहीं रोका. आज भी पतरातू के खिलाड़ियों का नाम ही काफी है. पतरातू की क्रिकेट टीम में पंचमंदिर के बल्लेबाज होते है तो मस्जिद कॉलोनी के गेंदबाज. शाह कॉलोनी वाले कीपींग तो हनुमान गढ़ी वाले ऑलराउंडर बने कमान संभालते है. बात बाकी ग्रामीण इलाकों के खाटी खिलाड़ी हमेशा विशेष छाप छोड़ जाते हैं. 

 

हमारे यहां बिग बाज़ार या रिलायंस जैसे शॉपिंग मौल भी नहीं है. हम चुन्नी लाल, लखन सेठ, बजरंग स्टोर या धनु के जैसे पारिवारिक दुकानदारों के यहां से राशन ले आते हैं, जहां आज नकद कल उधार अभी भी स्लोगन है. कपड़े के लिए केदार और सरदार हैं हीं. कुशवाहा से केक मिल जाता है और मिस्ठान भंडार से मिठाई इसलिए बाल बुत्रू सबका जन्मदिन मनाने में भी दिक्कत नहीं होता. पन्ना लाल का चाट, भरत और दिलखुश के गुपचुप, लिलू का चाउमिन, बुक स्टोर के समोसे और चन्द्रकला हमारे यहां के मुख्य व्यंजन है, समझ लीजिए यही हमारे यहां के डोमिनोज है. आजकल मोमोज भी मिलने लगा है. हां भाई छोटा शहर अब बड़ा भी तो होने लगा है. डैम किनारे अब तो फैंसी रेस्टोरेंट भी खुल गया है. 


हर शहर की संस्कृति उसकी पहचान होती है. हमारे पतरातू की यूएसपी भाईचारगी में है. कोलोनी सेट अप होने के कारण हमेशा से हर वर्ग और समाज के लोग ऐसे घुले मिले रहे की कभी ध्रुवीकरण नहीं हुआ. हर सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते लोग सर्व धर्म समभाव को मूलमंत्र मानते है. हर पूजा की पवित्रता भी होती है, क्रिसमस का उल्लास भी, ईद में जश्न मनता है तो गुरुनानक जयंती पर सब मिल बांट लंगर खाते हैं. 


कमोबेश यही बात है कि हिंदुस्तान के इस छोटे अंश पतरातू में भारत का बड़ा प्रारूप दिखता है, जहां शहर का फ्लेवर भी है और गांव का जायका. इसीलिए तो कहता हूं कि जब रास्ता ही इतना खूबसूरत हो, तो सोचिए शहर कितना सुंदर होगा हमारा 'पतरातू'.


- ऋषभ राज (2011)


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