सौंदा-डी कोलफील्ड्

भारत में कोयला खनिक दिवस (Coal Miner's Day) हर साल 4th मई को मनाया जाता है। खनिक दिवस पर लिखी गई मेरी ये छोटी सी कहानी खनिकों के परिश्रम और साहस को समर्पित है।




सौंदा-डी (Saunda-D) पतरातू में स्थित एक कोलफील्ड् हैं। यह क्षेत्र मुख्यतः कोयला खनन के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) जैसी कंपनियों की कई खदानें हैं। 1947 में यहां कोयला खनन की शुरुआत हुई और अब तक कितनी खदानें कई बार हादसों और भू-धंसान का शिकार भी हुईं। कई मजदूरों ने अपनी जान गंवाई। अब सौंदा-डी एक कोलफील्ड् टाउन के रूप में जाना जाता है, जहां मॉडर्न स्कूल, अस्पताल, और छोटे-छोटे बाज़ार यहां की जिंदगी को आसान बनाते हैं। पहले यहाँ की जिंदगी ज्यादा मुश्किलों वाली थी, लेकिन मजदूरों की मेहनत ने इस जगह को पहले से बहुत ही बेहतर बना दिया है। शुरुआती सालों में यहां रोजगार के लिए दूर-दूर से मजदूर आए। उनमें से एक थे रामलाल, जो अपने परिवार के साथ कई दशकों पहले बिहार के एक गांव से यहाँ आए थे।


रामलाल की सुबह बहुत जल्दी शुरू होती थी। सूरज निकलने से पहले ही वह अपने श्रमिक साथियों के साथ खदान की ओर निकल पड़ते। खदान के अंदर अंधेरा, धूल और दम घुटने वाले माहौल में घंटों काम करना पड़ता था। शाम होते-होते जब रामलाल घर लौटेते तो उनके चेहरे पर कोयले की काली परत जम जाती थी। उनकी आंखों में थकान होती थी, लेकिन उनके दिल में एक अभिमान भी था। वह जानते थे कि उनका काम कितना खतरनाक है लेकिन यह भी अच्छी तरह से समझते थे कि इससे ही उनके परिवार का पेट भरता है।


हर रोज जब भी वो अपने बच्चों को देखते जो उस समय स्कूल में पढ़ते थे तो मन ही मन प्रार्थना करते कि उनके बच्चे कभी खदान में काम न करे। वह हमेशा चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी पाएं जहां उन्हें हर दिन मौत के मुंह में जाने की ज़रूरत न हो।


- सुदेश कुमार 

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